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न्यायालय किन धाराओं के तहत मृत्युदंड दे सकता है ? Under Which Sections Can The Court Give Death Penalty ?

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  न्यायालय किन धाराओं के तहत मृत्युदंड दे सकता है ? Under Which Sections Can The Court Give Death Penalty ? न्यायालय विभिन्न धाराओं के तहत फांसी की सजा दे सकता है, जिनमें मुख्यतः शामिल हैं: 1.भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 :- यह हत्या के लिए है। आईपीसी 302 भारतीय दंड संहिता की धारा को संदर्भित करता है जो हत्या से संबंधित है। यह अपराध को परिभाषित करता है और हत्या करने के लिए सजा निर्धारित करता है, जिसमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड शामिल हो सकता है। यह धारा उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है जिनके तहत किसी व्यक्ति पर हत्या का आरोप लगाया जा सकता है, जिसमें इरादे और कृत्य की प्रकृति पर जोर दिया जाता है। 2.IPC की धारा 121:- देशद्रोह या युद्ध के खिलाफ साजिश करने के लिए। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 121 भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने या युद्ध छेड़ने का प्रयास करने के अपराध से संबंधित है। यह अधिनियम को हिंसक तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने या भारत के खिलाफ संघर्ष में दुश्मन की सहायता करने के प्रयास के रूप में परिभाषित करता है। इस अपराध की सज़ा गंभीर हो सकती है, जिसमें मामले ...

सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति लगाई (लेडी ऑफ जस्टिस) New Statue Of Goddess Of Justice Installed In Supreme Court 'Lady Of Justice'‌

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   सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति लगाई (लेडी ऑफ जस्टिस) New Statue Of Goddess Of Justice Installed In Supreme Court 'Lady Of Justice'‌ इस मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई है।‌ ये सब निर्णय CJI डी वाई चंद्रचूड़ जी का है CJI डी वाई चंद्रचूड़ के निर्देशों पर न्याय की देवी में बदलाव कर दिया गया है। CJI डी वाई चंद्रचूड़ का मानना है कि तलवार हिंसा का प्रतीक है, जबकि, अदालतें हिंसा नहीं, बल्कि संवैधानिक कानूनों के तहत इंसाफ करती हैं। बाया हाथ में तलवार के स्थान पर संविधान की किताब रखी गयी है‌  दाया हाथ में तराजू सही है कि जो समान रूप से सबको न्याय देती है। मुर्ति सफेद रंग की है और इसे सफेद रंग के स्क्वायर पर रखा गया है CJI सर दिवाई चंद्रचूड़ ने इन बदलावों के उद्देश्य से बताया कि कानून में कोई अराजकता नहीं है। पुरानी मूर्ति में दिखाया गया अंधा कानून और सजा का प्रतीक आज के समय के हिसाब से सही नहीं था, इसलिए ये बदलाव किए गए हैं।

कॉलेजियम प्रणाली क्या है ? What Is Collegium System ?

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  कॉलेजियम प्रणाली क्या है ? What Is Collegium System ? कॉलेजियम प्रणाली भारत में न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और पदोन्नति की प्रक्रिया है। यह प्रणाली मुख्यतः सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन के लिए कार्यरत है। भारतीय संविधान के मुख्य न्यायाधीश के निर्देश 124 के अंतर्गत आते हैं। कॉलेजियम प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 1. संरचना: - कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं। 2. नियुक्ति प्रक्रिया :- कॉलेजियम न्यायाधीशों के लिए सिफारिशें करता है, जिन्हें बाद में राष्ट्रपति {अनुच्छेद 124 (2)}द्वारा अनुमोदित किया जाता है। राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से पहले प्रधानमंत्री और कानून मंत्री से सलाह लेते हैं। कभी-कभी, सरकार उच्चतम न्यायालय की सिफारिशों का भी ध्यान रखती है। 3. पदोन्नति : -यह प्रणाली वरिष्ठता के आधार पर न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिए भी जिम्मेदार है। सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है।  4. स्वायत्तता: -कॉलेजियम प्रणाली का उद्देश...

संविदा और क़रार में क्या अंतर हैं ? What Is The Difference Between Contract And Agreement?

  संविदा और क़रार में क्या अंतर हैं ? What Is The Difference Between Contract And Agreement? संविदा :- वह करार है जो विधित: प्रवर्तनीय हो,संविदा हैं संविदा एक कानूनी समझौता है जिसमें दो या दो से अधिक पक्षकार किसी विशेष कार्य को करने या न करने पर सहमति की मांग करते हैं या सहमति व्यक्त करते हैं यह एक निश्चित रूप से बंधा हुआ वचन है जिसमें गुजारा भत्ता , अधिकार और दायित्व निर्धारित होते हैं यह परिभाषा संविदा अधिनियम 1872 की धारा 2(h) के दी गई है क़रार :- क़रार एक ऐसा वचन है जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल हो, वचन शब्द की परिभाषा धारा 2(b) में दी गई है जब प्रस्तावना स्वीकार कर ली जाती है तो वह वचन बन जाता है जिस कानून के रूप में लागू किया जा सकता है वचन से ही क़रार बनता है और क़रार से ही संविदा बनती है , हर कोई संविदा क़रार हो सकती है लेकिन हर कोई क़रार संविदा नहीं हो सकता ।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा की उम्र निर्धारित करने का दस्तावेज नहीं है- आधार ( Supreme Court Said That There Is No Document To Determine Age – Aadhaar )

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा की उम्र निर्धारित करने का दस्तावेज नहीं है- आधार ( Supreme Court Said That There Is No Document To Determine Age – Aadhaar )   पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए   सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस उज्जल भैया और जस्टिस संजय करोल की पीट ने यह कहाॅ की उम्र निर्धारित करने का दस्तावेज आधार कार्ड को नहीं मान सकते  किशोर अधिनियम 2015 की धारा 94 के तहत उम्र निर्धारित करने का दस्तावेज 10वीं कक्षा की मार्कशीट के आधार पर किया जाएगा ना कि आधार कार्ड से क्योंकि आधार कार्ड एक पहचान का दस्तावेज बन सकता है ना की उम्र निर्धारित करने का  पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट की एक पीट ने सड़क दुर्घटना में मृतक पीड़ित की आयु का निर्धारण आधार कार्ड से कर दिया जो कि सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय को गलत ठहराया